ठुमक ठुमक पीपल के पत्ते
तुम्हारे आड़े हाथ के जैसे
तुमने मना किया, उनको सहला के काम चलाता हूँ
कामदेव के वाहन तोते
मासूम नटखट तुम जैसे
तुमने परदा किया, उनको देख के खुश हो जाता हूँ
लड़ते खूब हैं, फिर भी अंत में इनके जैसा प्रेम कहाँ
मानव जगत में पवित्रता और शीतलता अब बची कहाँ
तुमने मुस्काना छोड़ा, अब इनमें ही ढूंढने जाता हूँ
रात होते रात की रानी
चंद्रमुखी तुम जैसी खिलती
तुमने दूर किया, उसकी महक में मैं रम जाता हूँ
सुबह रोज़ उन फूलों को छूता
कपास कोमलता, उतनी ही मृदुता
रोज उन्हें हाथों में भरता
प्रभु वर तो ऐसे ही मिलता
देवी के मुख पर रोज स्पर्श अब ऐसे ही कर पाता हूँ
भैरव के प्यारे ये कुत्ते
पीछे पीछे रोज ये चलते
रोटी से क्या मतलब इनको, ये तो बस प्रेम को आतुर
मंदिर के पट तुम्हारे दुर्गम, कब खुलते हैं पता नहीं
जब तक बंद, तब तक मैं इनको ही प्रेम चढ़ाता हूँ
आँखें दो देखता रोज
बड़ी सी ये, बातें भी बड़ी
इनमें देखो तो बताती हैं
इनमें बरसों से बंद आत्मा अब आज़ादी चाहती है
इनपे पहरा पलकों का है, मन की ऐसी ये चालाकी
पास आऊँ तो पलक झपकते द्वार बंद हो जाते हैं
देवी का ये आदेश भी भक्त को है स्वीकार परंतु
तुमने मुँह फेरा, मन में ही तुमको आज़ाद कराता हूँ
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