भाव

अंतर्मन में तीव्र इच्छा 
आगे की यात्रा है दुर्गम 
है भाव में तेरे शक्ति तो मंदिर तो जाना ही होगा 

नाव में तेरी कोलाहल 
परखच्चे उड़ा गईं लहरें 
है भाव में तेरे शक्ति, मीलों आज तैर कर जाना होगा 

रेगिस्तान में भीषण गर्मी 
कदम कदम पर बरसे आग 
है भाव में तेरे शक्ति, रातों में जग जग कर जाना होगा 

पर्वत पर भीषण तूफान 
पानी कल था आज बर्फ है
भाव में तेरे आग, बर्फ पिघला कर बढ़ते जाना होगा 

दलदल ने जकड़े तेरे पैर 
इनकी आहुति देकर जा 
भाव में तेरे‌ शक्ति तो तू रेंग रेंग कर जाएगा 

चट्टानों ने जकड़े हाथ
इनको भी अर्पित करके जा 
भाव में तेरे पंख, गुफा में लोट लोट कर जाएगा 

मूर्ति समक्ष है वाक् अशक्त 
उसमें कोई कान नहीं 
है भाव में तेरे शक्ति, मन से ही आरती सुनाएगा 

मूर्ति कैसे तुझे पहचाने 
आँखें उसकी पत्थर की 
है भाव में तेरे शक्ति, आत्मा से ही अब जुड़ पाएगा 

विचार भी भाव बिन अशक्त हैं 
शरीर भी भाव बिन अशक्त है 
भाव पकड़ उसमें ही शक्ति, वही पार ले जाएगा 
मूर्ति भी हो भगवान, उसमें भी भाव जगाएगा 
पत्थर से पाला पड़ जाए, तो उससे भी बैर कैसा 
वो भावहीन तो उससे भिड़कर तू क्या ही पाएगा 
भाव हों तो पत्थर भी फिर ईश्वर ही कहलाएगा


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