घर के रास्ते को पैदल चलता, किसी कठिन सी चीज़ पर सोचता मैं
निर्णय पर किंकर्त्तव्यविमूढ़
तभी बगल से एक टेम्पू गुज़रे, अपने साथ लिए एक गाना
जो मुझे सिखा जाए सोचना
निर्णय तो मैं ले ही चुका था, उस निर्णय को जो समझा जाए
मुश्किलों में राह दिखाता, क्या वही गीत भगवान है?
घर के बाहर शाम को, जेबों में अपने हाथ डाले
कुछ ऊपर सा देखता हुआ, अपनी दुनिया में चलता हुआ मैं
अक्सर याद नहीं रहता, पर मन खराब लिए रहता हूँ
ज़्यादा खराब न लगे, शायद इसीलिए भी चलता हूँ
मन की उस दुनिया की उन
दीवारों को असमर्थ सिद्ध करती
बिना किसी कारण के, पर मेरे ही साथ, खेलती वो तितली सी लड़की
कितनी भी दुर्गम हो मनोस्थिति, उस पर कागज़ के जहाज सी उड़ती
और वहाँ हरीतिमा फैलाती, क्या वही तितली भगवान है?
सुबह के साढ़े आठ, ऑफिस के रस्ते में मैं
हाथ में गाड़ी का स्टीयरिंग, और दिमाग में हिन्दुस्तान अखबार
अखबार का पन्ना क्र. ४, "बुजुर्ग माँ बाप पर बेटे का अत्याचार"
छुई-मुई सा है मन, तब भी पता नहीं क्यों पढ़ता हूँ
पढ़ता हूँ और फिर अंतहीन सोचता हूँ
सोचता हूँ, और फिर दुनिया से डरता हूँ
भावशून्यता से...
शायद गलत है, इसीलिए मिलता है रुक जाने का सन्देश
कैसी किस्मत है, अभी लालबत्ती हुई वो भी २ मिनट की?
गाड़ी बंद करता हूँ, और आसपास देखने लगता हूँ
दिखती हैं एक और बुजुर्ग, अपने-आप सड़क पार करती हुईं
आधी सड़क पार की, और तभी नीचे गिरती हुईं
अंदर का मन थोड़ा फुर्ती लाता है, और दुनियादारी रोकती है
"गाड़ी में है, अकेला है, लालबत्ती पे है, कैसे जाएगा?"
तभी बगल की गाड़ी का मसीहा, दुनियादारी के दरवाज़े खोलके निकलता है
उन दादी को उठाता है, सड़क पार कराता है
आधा मिनट अब भी बचा है, और गाड़ी में आके बैठ भी जाता है
यही है लालबत्ती का हीरो, दुनियादारी का कल्कि
अखबार के पन्ना क्रमांक चार का भगवान नरसिंह
वो तितली सी लड़की है प्रसन्नता की लक्ष्मी, और वो गीत सरस्वती
और इन जामवंतों के सान्निध्य में हम सब
भारत के तट पर हनुमान समान
और क्या पता, शायद हम भी जामवंत हों?
ज़्यादा कुछ लगता नहीं है जामवंत बनने में
बस यही छोटे छोटे से काम
किसी भूले को रास्ता बताना, प्यासे को पानी देना
अलग से नहीं तो बचा हुआ ही सही, सड़क किनारे किसी को खाना दे देना
हो सकता है पता भी ना हो, लेकिन बस यूं ही किसी के बन गए हों
|| जामवंत ||
निर्णय पर किंकर्त्तव्यविमूढ़
तभी बगल से एक टेम्पू गुज़रे, अपने साथ लिए एक गाना
जो मुझे सिखा जाए सोचना
निर्णय तो मैं ले ही चुका था, उस निर्णय को जो समझा जाए
मुश्किलों में राह दिखाता, क्या वही गीत भगवान है?
घर के बाहर शाम को, जेबों में अपने हाथ डाले
कुछ ऊपर सा देखता हुआ, अपनी दुनिया में चलता हुआ मैं
अक्सर याद नहीं रहता, पर मन खराब लिए रहता हूँ
ज़्यादा खराब न लगे, शायद इसीलिए भी चलता हूँ
मन की उस दुनिया की उन
दीवारों को असमर्थ सिद्ध करती
बिना किसी कारण के, पर मेरे ही साथ, खेलती वो तितली सी लड़की
कितनी भी दुर्गम हो मनोस्थिति, उस पर कागज़ के जहाज सी उड़ती
और वहाँ हरीतिमा फैलाती, क्या वही तितली भगवान है?
सुबह के साढ़े आठ, ऑफिस के रस्ते में मैं
हाथ में गाड़ी का स्टीयरिंग, और दिमाग में हिन्दुस्तान अखबार
अखबार का पन्ना क्र. ४, "बुजुर्ग माँ बाप पर बेटे का अत्याचार"
छुई-मुई सा है मन, तब भी पता नहीं क्यों पढ़ता हूँ
पढ़ता हूँ और फिर अंतहीन सोचता हूँ
सोचता हूँ, और फिर दुनिया से डरता हूँ
भावशून्यता से...
शायद गलत है, इसीलिए मिलता है रुक जाने का सन्देश
कैसी किस्मत है, अभी लालबत्ती हुई वो भी २ मिनट की?
गाड़ी बंद करता हूँ, और आसपास देखने लगता हूँ
दिखती हैं एक और बुजुर्ग, अपने-आप सड़क पार करती हुईं
आधी सड़क पार की, और तभी नीचे गिरती हुईं
अंदर का मन थोड़ा फुर्ती लाता है, और दुनियादारी रोकती है
"गाड़ी में है, अकेला है, लालबत्ती पे है, कैसे जाएगा?"
तभी बगल की गाड़ी का मसीहा, दुनियादारी के दरवाज़े खोलके निकलता है
उन दादी को उठाता है, सड़क पार कराता है
आधा मिनट अब भी बचा है, और गाड़ी में आके बैठ भी जाता है
यही है लालबत्ती का हीरो, दुनियादारी का कल्कि
अखबार के पन्ना क्रमांक चार का भगवान नरसिंह
वो तितली सी लड़की है प्रसन्नता की लक्ष्मी, और वो गीत सरस्वती
और इन जामवंतों के सान्निध्य में हम सब
भारत के तट पर हनुमान समान
और क्या पता, शायद हम भी जामवंत हों?
ज़्यादा कुछ लगता नहीं है जामवंत बनने में
बस यही छोटे छोटे से काम
किसी भूले को रास्ता बताना, प्यासे को पानी देना
अलग से नहीं तो बचा हुआ ही सही, सड़क किनारे किसी को खाना दे देना
हो सकता है पता भी ना हो, लेकिन बस यूं ही किसी के बन गए हों
|| जामवंत ||
Shirshak "Bal ki khal" ka kya matlab hai kahani se??
जवाब देंहटाएंबाल की खाल ब्लॉग का नाम है। :)
हटाएंइस कहानी का शीर्षक भगवान जामवंत है।
Bahut hi achhi!!! Bhaut samay baad itni achhi Kavita padhne ki Mili😊
जवाब देंहटाएं:) धन्यवाद
हटाएंशायद हमें जामवंत होने के लिए एक और जन्म लेना पड़े। एक और जन्म, जिसका उद्देश्य पहले से तय हो, पहले से तय हो हमारा किरदार, हमारी गति और हमारी राह । और पहले से तय हो लालबत्ती का वक़्त ।
जवाब देंहटाएंआसान तो हो जाएगा काफी फिर :D ... पर जितना तय हो उतना ही करेंगे तो क्या जामवंत सही मायने में बन पाएंगे?
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