स्त्रोत: आवाज़, आईआईटी खड़गपुर, अप्रैल २०१५(2015) का समाचारपत्र
साल 2018,अप्रैल का महीना। हर साल की तरह जिमखाना चुनाव के परिणामों के चर्चे हर जगह चल रहे थे। VP कौन बना, हॉल-पैक्ट राजनीति, आदर्श चुनाव और उम्मीदवार आदि विषयों पर केजीपी के बुद्धिजीवी जमकर माथाफोड़ी कर रहे थे। लेकिन इस सब के बीच केजीपी के किसी कोने में एक द्वितीय वर्ष के छात्र के मन में कुछ अलग ही सवाल उठ रहे थे।
नवाज़ीश : यार अपना हॉल जीत गया ना, तो तेरा जी इतना क्यों मचल रहा है। भाई पढ़ाई पे ध्यान दे और आराम से पीस मार के सो, एंडसेम आ रहे हैं। मेरा क्यों दिमाग खा रहा है?
निहाल : नहीं यार, तू खुद सोच, तुझे नहीं लगता कि इतनी ज्यादा जनता होने के बाद भी LBS और MMM का VP का एक उम्मीदवार तक न होना अजीब है? MMM का तो चलो मान भी लिया जाए कि M.Tech. वाली जनता बहुत व्यस्त होती है, लेकिन LBS में ऐसे कौन से सब महा-व्यस्त मग्गू भर गए हैं जो ये लोग एक उम्मीदवार तक नहीं ढूँढ पाते?
आयुष : भाई तेरी बात तो सही है, लेकिन तू सवाल गलत इंसान से पूछ रहा है। देख मेरा तो भेजा फ्राई कर मत, इतनी ही खुजली हो रही है तो जाके अपने पुराने हप्पा से ही फंडे लेले। बकवास तो करता ही रहता है हर टाइम, बस तुझ जैसे बकवास ढूँढने और सुनने वालों की ही कमी है उसको। चल जा और सोने दे मुझे।
लेकिन दोस्तों के ऐसे दुत्कारने के बावजूद निहाल को ये सवाल परेशान किये जा रहा था। अचानक से उसके दिमाग में आया कि LBS में शायद 2014 से ही इतनी जनता भेजी जा रही है, तो इसके बारे में अगर कोई बता सकता है तो वो कोई 5th year ही होगा, और वो सच में अपने पुराने हप्पा अभिषेक के पास चला गया।
निहाल : अभिषेक एक बात बताओ। आपको नहीं लगता कि LBS और MMM से एक भी VP का उम्मीदवार न खड़ा होना बहुत अजीब बात है?
अभिषेक(मुस्कुराते हुए) : हाँ... लेकिन ये कोई इत्तेफाक नहीं है; इसके साथ बहुत लम्बी कहानी जुड़ी हुई है।
और इससे पहले कि निहाल उनको रोक पाता, पुराने हप्पा जी कहानी के साथ शुरू हो गए।
"यह सब 2014-15 में शुरू हुआ था, जब पहली बार LBS में सारे ही फ़च्चों को भर दिया गया था, और काफी 2nd-3rd years को भी वहीँ भेज दिया गया था। चुनाव आते-आते यह खतरा मंडराने लगा था कि LBS का एक VP उम्मीदवार खड़ा हो सकता है, और हुआ भी यही। सरसरी निगाह मारें तो LBS की इतनी सारी जनता अगर हॉल टेम्पो में वोट दे देती तो आराम से उनकी जीत पक्की थी, लेकिन एहतियातन उन्होंने MMM को अपने साथ पैक्ट में शामिल करने की बात चालू कर दी। अब तो जीत पक्की देख LBS वाले एक महीने पहले से ही रौब जमाने लगे और "VP हमारा होगा" जैसी आवाजें LBS के हर कोने से सुनाई देने लगीं।
ऐसा घोर अनर्थ होते हुए देख सभी सीनियर हॉल्स में खलबली मच गई और सब "इमरजेंसी मोड" में आ गए। रोज़-रोज़ 5-6 घंटे बैठकें चली, गरमा-गरम बहस हुई और गहन चिंतन के बाद एक ऐसी जटिल रणनीति बनी जिसने केजीपी राजनीति के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। LBS और MMM के इस अजेय दिखने वाले पैक्ट को असरदार तरीके से गिरा दिया गया और साथ ही यह भी सुनिश्चित कर लिया गया कि भविष्य में ऐसा झंझट कभी न हो। "Divide and Rule" के सिद्धांत पर आधारित इस रणनीति को ऐसे पेशेवर तरीके से अंजाम दिया गया कि बंगाल-विभाजन के सूत्रधार लॉर्ड कर्ज़न भी दाँतों तले ऊँगली दबा लें।"
कथा-कहानी चलते देख आसपास के और 4-5 लोग आकर पुराने हप्पा जी के पास आके बैठ गए और पुराने हप्पा जी की संतुष्टि से भरी मुस्कराहट से मंत्रमुग्ध होकर एकटक प्रवचन सुनने लगे।
"रणनीति के तहत सबसे पहले LBS का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए सारे सीनियर हॉल्स ऐसा दिखाने लगे जैसे उनके आपस में कोई पैक्ट हो ही नहीं। अब LBS ही नहीं बल्कि हर हॉल के हर कोने से "VP हमारा होगा" जैसी आवाजें आने लगी। लगभग हर बड़े सीनियर हॉल से एक VP उम्मीदवार खड़ा होने लगा। हर हॉल डे में खूब जमकर प्रचार हुआ; हालत ये हो गई कि कभी-कभार तो एक कमरे के बाहर प्रचार के लिए 3-4 VP उम्मीदवारों की कतार लग जाती थी। उम्मीद के मुताबिक़ LBS वालों को यह लगने लगा कि अब तो वो बिना बाहरी समर्थन के भी जीत ही जाएँगे, और उन्होंने MMM के साथ पैक्ट तो दूर, उनको ऐसा भगा दिया कि युग-युगांतर तक उनमें कोई भी गठबंधन बनने की संभावना ही ख़त्म हो गई।
अब इनके अलग हो जाने के बाद यह भी पक्का किया जाना ज़रूरी था कि ये दोनों फिर से न मिल जाएँ। इसके लिए कुछ 2-3 छोटे सीनियर हॉल MMM और इतने ही LBS के साथ मिल गए। साधारण से चुनावों को इन दो सबसे ज्यादा जनता वाले हॉल्स के बीच भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैच जैसा बना दिया गया था। अब जबकि सबका ध्यान इन्हीं दोनों पर था, तो मौका देखते हुए जो 4-5 VP उम्मीदवार सीनियर हॉल्स के थे वो नामांकन आते आते एक हो गया, व बाकी बचे-खुचे UG और PG हॉल के साथ मिलकर उनका एक तीसरा मोर्चा बना लिया गया। अब तक सबको लग रहा था कि जीत LBS या MMM में से किसी एक धड़े की होगी, लेकिन ये खेल SOP आते-आते पूरी तरह पलट गया।
नामांकन पक्के हो जाने के बाद से ही "अचानक" से पैक्ट कमज़ोर पड़ने लगे और चुनाव का दिन आने तक गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गए। सारा खेल अब सामने आने लगा। सारे सीनियर हॉल जो कि अब तक LBS या MMM में से किसी के साथ होने का ढोंग कर रहे थे वो सबके सब अब तीसरे मोर्चे में जा मिले, और LBS व MMM अकेले पड़ गए। आपसी रिश्तों में खुद ज़हर घोल देने व खुद की जनसँख्या के अहंकार के कारण दोनों में कोई समझौता नहीं हो पाया व इन दोनों की शर्मनाक के साथ तीसरे मोर्चे की धमाकेदार जीत हुई।
इसके बाद से शायद LBS व MMM ने राजनीति से दूर रहने की कसम खाई हुई है, इसीलिये इन दोनों ही हॉल्स से उसके बाद से कोई VP उम्मीदवार खड़ा नहीं हुआ। इसके बाद से सबको मालूम है कि जब बात सत्ता की आती है तो सीनियर हॉल्स से उसको शायद ही कोई छीन सकता है, और जब भी ऐसी कोशिशें होंगी तो उनको मिलकर उखाड़कर फेंकने का दम सीनियर हॉल बखूबी रखते हैं।"
पुराने हप्पा के इस ज्ञान ने निहाल और बाकी भक्तों की जिज्ञासा को पूरी तरह शांत कर दिया। हालाँकि एंडसेम से ठीक पहले 3 घंटे उनके जरूर चले गए, लेकिन केजीपी इतिहास की इस अलौकिक घटना को सबने हमेशा के लिए याद कर लिया और सीखा कि राजनीति बच्चों की चीज़ नहीं है। यहाँ जीत बल की नहीं बल्कि दिमाग की होती है, और अपने बल पर अहंकार करने वाला हमेशा हारता है।
साल 2018,अप्रैल का महीना। हर साल की तरह जिमखाना चुनाव के परिणामों के चर्चे हर जगह चल रहे थे। VP कौन बना, हॉल-पैक्ट राजनीति, आदर्श चुनाव और उम्मीदवार आदि विषयों पर केजीपी के बुद्धिजीवी जमकर माथाफोड़ी कर रहे थे। लेकिन इस सब के बीच केजीपी के किसी कोने में एक द्वितीय वर्ष के छात्र के मन में कुछ अलग ही सवाल उठ रहे थे।
नवाज़ीश : यार अपना हॉल जीत गया ना, तो तेरा जी इतना क्यों मचल रहा है। भाई पढ़ाई पे ध्यान दे और आराम से पीस मार के सो, एंडसेम आ रहे हैं। मेरा क्यों दिमाग खा रहा है?
निहाल : नहीं यार, तू खुद सोच, तुझे नहीं लगता कि इतनी ज्यादा जनता होने के बाद भी LBS और MMM का VP का एक उम्मीदवार तक न होना अजीब है? MMM का तो चलो मान भी लिया जाए कि M.Tech. वाली जनता बहुत व्यस्त होती है, लेकिन LBS में ऐसे कौन से सब महा-व्यस्त मग्गू भर गए हैं जो ये लोग एक उम्मीदवार तक नहीं ढूँढ पाते?
आयुष : भाई तेरी बात तो सही है, लेकिन तू सवाल गलत इंसान से पूछ रहा है। देख मेरा तो भेजा फ्राई कर मत, इतनी ही खुजली हो रही है तो जाके अपने पुराने हप्पा से ही फंडे लेले। बकवास तो करता ही रहता है हर टाइम, बस तुझ जैसे बकवास ढूँढने और सुनने वालों की ही कमी है उसको। चल जा और सोने दे मुझे।
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स्त्रोत: पंजी डूड |
लेकिन दोस्तों के ऐसे दुत्कारने के बावजूद निहाल को ये सवाल परेशान किये जा रहा था। अचानक से उसके दिमाग में आया कि LBS में शायद 2014 से ही इतनी जनता भेजी जा रही है, तो इसके बारे में अगर कोई बता सकता है तो वो कोई 5th year ही होगा, और वो सच में अपने पुराने हप्पा अभिषेक के पास चला गया।
निहाल : अभिषेक एक बात बताओ। आपको नहीं लगता कि LBS और MMM से एक भी VP का उम्मीदवार न खड़ा होना बहुत अजीब बात है?
अभिषेक(मुस्कुराते हुए) : हाँ... लेकिन ये कोई इत्तेफाक नहीं है; इसके साथ बहुत लम्बी कहानी जुड़ी हुई है।
और इससे पहले कि निहाल उनको रोक पाता, पुराने हप्पा जी कहानी के साथ शुरू हो गए।
"यह सब 2014-15 में शुरू हुआ था, जब पहली बार LBS में सारे ही फ़च्चों को भर दिया गया था, और काफी 2nd-3rd years को भी वहीँ भेज दिया गया था। चुनाव आते-आते यह खतरा मंडराने लगा था कि LBS का एक VP उम्मीदवार खड़ा हो सकता है, और हुआ भी यही। सरसरी निगाह मारें तो LBS की इतनी सारी जनता अगर हॉल टेम्पो में वोट दे देती तो आराम से उनकी जीत पक्की थी, लेकिन एहतियातन उन्होंने MMM को अपने साथ पैक्ट में शामिल करने की बात चालू कर दी। अब तो जीत पक्की देख LBS वाले एक महीने पहले से ही रौब जमाने लगे और "VP हमारा होगा" जैसी आवाजें LBS के हर कोने से सुनाई देने लगीं।
ऐसा घोर अनर्थ होते हुए देख सभी सीनियर हॉल्स में खलबली मच गई और सब "इमरजेंसी मोड" में आ गए। रोज़-रोज़ 5-6 घंटे बैठकें चली, गरमा-गरम बहस हुई और गहन चिंतन के बाद एक ऐसी जटिल रणनीति बनी जिसने केजीपी राजनीति के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। LBS और MMM के इस अजेय दिखने वाले पैक्ट को असरदार तरीके से गिरा दिया गया और साथ ही यह भी सुनिश्चित कर लिया गया कि भविष्य में ऐसा झंझट कभी न हो। "Divide and Rule" के सिद्धांत पर आधारित इस रणनीति को ऐसे पेशेवर तरीके से अंजाम दिया गया कि बंगाल-विभाजन के सूत्रधार लॉर्ड कर्ज़न भी दाँतों तले ऊँगली दबा लें।"
कथा-कहानी चलते देख आसपास के और 4-5 लोग आकर पुराने हप्पा जी के पास आके बैठ गए और पुराने हप्पा जी की संतुष्टि से भरी मुस्कराहट से मंत्रमुग्ध होकर एकटक प्रवचन सुनने लगे।
"रणनीति के तहत सबसे पहले LBS का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए सारे सीनियर हॉल्स ऐसा दिखाने लगे जैसे उनके आपस में कोई पैक्ट हो ही नहीं। अब LBS ही नहीं बल्कि हर हॉल के हर कोने से "VP हमारा होगा" जैसी आवाजें आने लगी। लगभग हर बड़े सीनियर हॉल से एक VP उम्मीदवार खड़ा होने लगा। हर हॉल डे में खूब जमकर प्रचार हुआ; हालत ये हो गई कि कभी-कभार तो एक कमरे के बाहर प्रचार के लिए 3-4 VP उम्मीदवारों की कतार लग जाती थी। उम्मीद के मुताबिक़ LBS वालों को यह लगने लगा कि अब तो वो बिना बाहरी समर्थन के भी जीत ही जाएँगे, और उन्होंने MMM के साथ पैक्ट तो दूर, उनको ऐसा भगा दिया कि युग-युगांतर तक उनमें कोई भी गठबंधन बनने की संभावना ही ख़त्म हो गई।
अब इनके अलग हो जाने के बाद यह भी पक्का किया जाना ज़रूरी था कि ये दोनों फिर से न मिल जाएँ। इसके लिए कुछ 2-3 छोटे सीनियर हॉल MMM और इतने ही LBS के साथ मिल गए। साधारण से चुनावों को इन दो सबसे ज्यादा जनता वाले हॉल्स के बीच भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैच जैसा बना दिया गया था। अब जबकि सबका ध्यान इन्हीं दोनों पर था, तो मौका देखते हुए जो 4-5 VP उम्मीदवार सीनियर हॉल्स के थे वो नामांकन आते आते एक हो गया, व बाकी बचे-खुचे UG और PG हॉल के साथ मिलकर उनका एक तीसरा मोर्चा बना लिया गया। अब तक सबको लग रहा था कि जीत LBS या MMM में से किसी एक धड़े की होगी, लेकिन ये खेल SOP आते-आते पूरी तरह पलट गया।
नामांकन पक्के हो जाने के बाद से ही "अचानक" से पैक्ट कमज़ोर पड़ने लगे और चुनाव का दिन आने तक गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गए। सारा खेल अब सामने आने लगा। सारे सीनियर हॉल जो कि अब तक LBS या MMM में से किसी के साथ होने का ढोंग कर रहे थे वो सबके सब अब तीसरे मोर्चे में जा मिले, और LBS व MMM अकेले पड़ गए। आपसी रिश्तों में खुद ज़हर घोल देने व खुद की जनसँख्या के अहंकार के कारण दोनों में कोई समझौता नहीं हो पाया व इन दोनों की शर्मनाक के साथ तीसरे मोर्चे की धमाकेदार जीत हुई।
इसके बाद से शायद LBS व MMM ने राजनीति से दूर रहने की कसम खाई हुई है, इसीलिये इन दोनों ही हॉल्स से उसके बाद से कोई VP उम्मीदवार खड़ा नहीं हुआ। इसके बाद से सबको मालूम है कि जब बात सत्ता की आती है तो सीनियर हॉल्स से उसको शायद ही कोई छीन सकता है, और जब भी ऐसी कोशिशें होंगी तो उनको मिलकर उखाड़कर फेंकने का दम सीनियर हॉल बखूबी रखते हैं।"
पुराने हप्पा के इस ज्ञान ने निहाल और बाकी भक्तों की जिज्ञासा को पूरी तरह शांत कर दिया। हालाँकि एंडसेम से ठीक पहले 3 घंटे उनके जरूर चले गए, लेकिन केजीपी इतिहास की इस अलौकिक घटना को सबने हमेशा के लिए याद कर लिया और सीखा कि राजनीति बच्चों की चीज़ नहीं है। यहाँ जीत बल की नहीं बल्कि दिमाग की होती है, और अपने बल पर अहंकार करने वाला हमेशा हारता है।
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